लेख

स्व॰ विन्देश्वरी शर्मा की भूमिका (01.01.1942 से 12.01.2017)

संरक्षक स्व॰ विन्देश्वरी शर्मा 
(01.01.1942 से 12.01.2017)
मान्यवरों
स्व॰ बिन्देश्वरी बाबू जी का जन्म दिनांक 01.01.1942 को गॉव नींगा (बेगुसराय) के एक मजदूर परिवार में हुआ था। स्व॰ बिन्देश्वरी बाबू, मेधावी छात्र थे, परंतु अर्थाभाव के कारण उच्च शिक्षा प्राप्त नहीं कर सके। 
उन दिनों भारत अपनी आजादी की अंगराई ले रही थी। ट्रेड यूनियनों का गढ़, बेगुसराय की धरती पर मजदूरों की समस्यायें उफान पर थी। तब मजदूरों (शिल्प मजदूर सहित) की आवाज सरकार तक पहुँचानेवालों में बिन्देश्वरी बाबू मुखर और निडर अगुआ माने जाते थे। इनके नही चाहते हुये भी इन्हें 1962 में ‘भारतीय कम्प्यूनिस्ट पार्टी’ की सदस्यता दिलाई गई। इनका मानना था कि पद नहीं वरण व्यक्ति अपनी सेवा से जाने-पहचाने जाते हैं। इनकी इसी कर्मठता को देखते हुये इन्हें बरौनी अंचल मंत्री का दाचित्व सौंपा गया था। सामाजिक व आर्थिक जीवन के साथ साथ इनका राजनीतिक जीवन भी काफी संघर्षपूर्ण रहा। मजदूरों के प्रति समर्पित स्व॰ बिन्देश्वरी बाबू को दो वर्ष के बाद हीं पार्टी में जिला सचिव मंडल का दायित्व सौंप दिया गया था। स्व॰ बिन्देश्वरी बाबू सदैव गरीबों एवं मजदूरों की आवाज को बुलंद करते रहे। इनके इन्हीं योग्यता के कारण वर्ष 1988 में पार्टी की ओर से सामाजवादी दर्शन के लिये ‘रसिया’ भेजा गया। वर्ष 1990 में इन्हें खेत-मजदूर यूनियन का जिला सचिव बनाया गया। तबतक स्व॰ बिन्देश्वरी बाबू राष्ट्रीय स्तर पर अपनी जगह बना चुके थे। मजदूरों की समस्याओं को लेकर स्व॰ बिन्देश्वरी बाबू महामहिम पूर्व राष्ट्रपति स्व॰ ज्ञानी जैल सिंह से भी मिले थे, जिसकी तस्वीरें राजभवन के पुस्तकालय में रक्षित है।
मजदूरों की समस्याओं को बुलंद करने के प्रति सजग स्व॰ बिन्देश्वरी बाबू बिहार की तात्कालीन राजनीतिक परिदृष्य से असहमत होते हुये वर्ष 1995 में भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी से अलग हो श्री नीतीश कुमार के साथ हो लिये। समाजवादी विचारों से ओत-प्रोत स्व॰ बिन्देश्वरी बाबू को एक वर्ष बाद हीं ‘जदयू’ में पिछड़ा प्रकोष्ठ फिर आगे चल कर अति पिछड़ा प्रकोष्ठ का प्रधान महासचिव का दायित्व सौंपा गया। इसी कालखंड में बढ़ई जाति को अत्यंत पिछड़ा वर्ग में शामिल करने की लड़ाई ‘विश्वकर्मा काष्ठ शिल्पी विकास समिति’ के नेतृत्व में सड़क पर उतर चुकी थी। इस लड़ाई के अगुआ में स्व॰ बिन्देश्वरी बाबू भी प्रमुख थे।
बात, वर्ष 2000 की है। उन दिनों काष्ठ मजदूरों की समस्या को लेकर राज्य के सभी जिलों में संगठन का धरना-प्रदर्शन चल रही थी। तब, स्व॰ बिन्देश्वरी बाबू इस संगठन में बेगुसराय जिला के जिला अध्यक्ष थे। इनके अगुवाई का भी प्रतिफल रहा कि बेगुसराय में यह संगठन घर-घर तक पहुँचते हुये अपनी मांगों को प्राप्त करने में सफल रही। समाज के प्रति भी समर्पित स्व॰ बिन्देश्वरी बाबू को साल 2005 के अधिवेशन में प्रदेश संरक्षक का दायित्व सौंपा गया था।

स्व॰ बिन्देश्वरी बाबू, जाति नहीं, जमात की राजनीति किया करते थे। यही कारण था कि मजदूर, इन्हें अपने दिल का धरकन मानते थे। इन्होंने अपने विवेक से समाज को जागृत करते रहे। राजनीतिक जागरूकता विहीन समाज से आने के कारण स्व॰ बिन्देश्वरी बाबू को उॅंचाई छूने में काफी कठिनाईयों का सामना कड़ना पड़ा था, बावजूद वे कभी थके नही ! इनके पदचिन्हों पर चलनेवाले दर्जनों व्यक्ति विधायिका और हजारों व्यक्ति त्रिस्तरीय पंचायत प्रतिनिधि में अपना पैर जमा चुके हैं। हमें गर्व है कि इनकी याद में बेगुसराय की धरती पर विश्वकर्मा काष्ठ शिल्पी विकास समिति का राज्य अधिवेशन दिनांक 20-21 मार्च 2021 को होने जा रही है।
विश्वकर्मा काष्ठ शिल्पी विकास समिति के संस्थापक एवं मुख्य संरक्षक श्री शिव पूजन ठाकुर के अनुसार स्व॰ बिन्देश्वरी बाबू को भारत सरकार के खर्चा पर Training Program on Enhancing Leadership Skill Development (28 July. to 1st Augist 2008) के लिये संस्था की ओर से V.V. Giri National Labour Institute, New Delhi गये थे। मजदूरों की समस्या आधारित इनके सुझावों पर कानून बनाने के लिये इनके सुझाव को भारत सरकार के पास भेजा गया था।   
इन्हीं संघर्ष के बीच स्व॰ बिन्देश्वरी बाबू का देहान्त अपने पैत्रिक घर पर 12 जनवरी 2017 को हो गई। इनके निघन पर माननीय मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार जी ने ‘एक समाजवाद विचार का अंत’ बताते हुये श्रद्धांजली देने इनके घर आये थे। तब माननीय मुख्यमंत्री जी ने कहा था कि ‘‘बिन्देश्वरी बाबू समाजवाद विचारों के धनी थे, जिन्होंने मजदूरों की समस्याओं को प्रमुखता से इमानदारी पूर्वक रखा करते थे। इनकी कमी ‘जदयू’ को सदैव खलती रहेगी।’’ संभवतः बिहार बढ़ई समाज से स्व॰ बिन्देष्वरी बाबू अकेला राजनीतिज्ञ रहें हैं, जिनके साथ पूर्व प्रधान मंत्री स्व॰ अटल बिहार बाजपेयी जी भी बेगुसराय में एक साथ चटाई पर बैठक कर राजनीतिक चर्चा किये थे। स्व॰ बिन्देष्वरी बाबू ने अपने परिवार को भी अपने तरह हीं सींचा है, जिनके पदचिन्हों पर इनके बड़े पुत्र श्री चन्द्रप्रकाष शर्मा (राज्य महाधिवेषन के स्वागताध्यक्ष) और छोटे पुत्र श्री प्रेम प्रकाष शर्मा आगे बढ़ रहें हैं।    
स्व॰ बिन्देश्वरी बाबू के पूण्य स्मृति के अवसर पर हम विश्वकर्मा काष्ठ शिल्पी विकास समिति परिवार इनके पदचिन्हों पर चलने एवं इनके अधूरे कार्यों को पूरा करने की शपथ लेते हैं।
बिन्देश्वरी बाबू………….अमर रहे………..! अमर रहे……………!! अमर रहे !!!
अश्रुपूर्ण श्रद्धांजली एवं आपको शत्-शत् नमन्……………………..
 
इन्हें भी जानें, 
1995 के दषक में संगठन अपनी अंगराई में था। बेगुसराय के स्व॰ भोला बाबू के सहयोग से बेगुसराय में विष्वकर्मा काष्ठ षिल्पी विकास समिति का गठन हुआ था। इसमें स्व॰ बिन्देश्वरी बाबू भी आये थे। पूछने पर इन्होंने बताया था कि संगठन की जी का जन्म दिनांक 01.01.1942 को गॉव नींगा (बेगुसराय) के एक मजदूर परिवार में हुआ था। स्व॰ बिन्देश्वरी बाबू, मेधावी छात्र थे, परंतु अर्थाभाव के कारण उच्च शिक्षा प्राप्त नहीं कर सके। 
उन दिनों भारत अपनी आजादी की अंगराई ले रही थी। ट्रेड यूनियनों का गढ़, बेगुसराय की धरती पर मजदूरों की समस्यायें उफान पर थी। तब मजदूरों (शिल्प मजदूर सहित) की आवाज सरकार तक पहुँचानेवालों में बिन्देश्वरी बाबू मुखर और निडर अगुआ माने जाते थे। इनके नही चाहते हुये भी इन्हें 1962 में ‘भारतीय कम्प्यूनिस्ट पार्टी’ की सदस्यता दिलाई गई। इनका मानना था कि पद नहीं वरण व्यक्ति अपनी सेवा से जाने-पहचाने जाते हैं। इनकी इसी कर्मठता को देखते हुये इन्हें बरौनी अंचल मंत्री का दाचित्व सौंपा गया। सामाजिक व आर्थिक जीवन के साथ साथ इनका राजनीतिक जीवन भी काफी संघर्षपूर्ण रहा। मजदूरों के प्रति समर्पित स्व॰ बिन्देश्वरी बाबू को दो वर्ष के बाद हीं पार्टी में जिला सचिव मंडल का दायित्व सौंप दिया गया था। स्व॰ बिन्देश्वरी बाबू सदैव गरीबों एवं मजदूरों की आवाज को बुलंद करते रहे। इनके इन्हीं योग्यता के कारण वर्ष 1988 में पार्टी की ओर से सामाजवादी दर्शन के लिये ‘रसिया’ भेजा गया। वर्ष 1990 में इन्हें खेत-मजदूर यूनियन का जिला सचिव बनाया गया। तबतक स्व॰ बिन्देश्वरी बाबू राष्ट्रीय स्तर पर अपनी जगह बना चुके थे। मजदूरों की समस्याओं को लेकर स्व॰ बिन्देश्वरी बाबू महामहिम पूर्व राष्ट्रपति स्व॰ ज्ञानी जैल सिंह से भी मिले थे, जिसकी तस्वीरें राजभवन के पुस्तकालय में रक्षित है।
मजदूरों की समस्याओं को बुलंद करने के प्रति सजग स्व॰ बिन्देश्वरी बाबू बिहार की तात्कालीन राजनीतिक परिदृष्य से असहमत होते हुये वर्ष 1995 में भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी से अलग हो श्री नीतीश कुमार के साथ हो लिये। समाजवादी विचारों से ओत-प्रोत स्व॰ बिन्देश्वरी बाबू को एक वर्ष बाद हीं ‘जदयू’ में पिछड़ा प्रकोष्ठ फिर आगे चल कर अति पिछड़ा प्रकोष्ठ का प्रधान महासचिव का दायित्व सौंपा गया। इसी कालखंड में बढ़ई जाति को अत्यंत पिछड़ा वर्ग में शामिल करने की लड़ाई सड़क पर उतर चुकी थी। इस लड़ाई के अगुआ में स्व॰ बिन्देश्वरी बाबू भी प्रमुख थे।
बात, वर्ष 2000 की है। उन दिनों काष्ठ मजदूरों की समस्या को लेकर ‘विश्वकर्मा काष्ठ शिल्पी विकास समिति’ राज्य के सभी जिलों में धरना-प्रदर्शन कर रही थी। तब, स्व॰ बिन्देश्वरी बाबू इस समिति के जिला अध्यक्ष थे। इन्हीं के अगुवाई का प्रतिफल रहा कि समिति अपनी मांगों को प्राप्त करने में सफल हुई थी। समाज के प्रति भी समर्पित स्व॰ बिन्देश्वरी बाबू को साल 2005 के अधिवेशन में प्रदेश संरक्षक का दायित्व सौंपा गया था।


लेख:-
   श्रीचरण शर्मा  वषिष्ठ शर्मा  
    जिला अध्यक्ष जिला सचिव     
विश्वकर्मा काष्ठ शिल्पी विकास समिति, बेगुसराय